प्रारम्भ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से सम्बन्धित निम्न समस्यायें आली के समक्ष चिन्हित होकर आयी
- वंचित वर्ग व गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगो को सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ न मिलना।
- राशन कोटेदार द्वारा राशन निर्धारित मूल्य व दाम से अधिक पर देना।
- राशन कोटेदार द्वारा राशन निर्धारित मात्रा से कम देना।
- महिलाओं में राशन वितरण से संबधित जानकारी व जागरूकता न होना।
- राशन कोटेदार द्वारा राशन के मूल्य व मात्रा का सार्वजनिक न करना।
- महिलाओं में भोजन के अधिकार की जानकारी न होना व जानकारी लेने की इच्छा का न होना।
- राशन की दुकान का नियमित रूप से न खुलना।
- लोगो में सरकारी योजनाओ के प्रति निराशा का होना।
आली द्वारा अपने कार्यक्षेत्र में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सुचारू क्रियान्वयन व लोगों में इस योजना तक पहुंच के लिये आली द्वारा उठाये गये कदम
- सर्वप्रथम आली की कार्यकर्ता ने अपने कार्यक्षेत्रों में अलग अलग दिवसो में व अलग अलग स्थानों में कई बार महिलाओं के साथ बैठको का आयोजन किया इन बैठको को आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को उनके आर्थिक व सामाजिक अधिकारो के प्रति जागरूक कराना व उन्हे सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबन्धित उनके अधिकारों से अवगत कराना साथ ही महिलाओं को उनके घरो की चार दिवारी से निकालना था।
- आली की कार्यकर्ता ने अपने कार्यक्षेत्रों में सक्रिय महिलाओं का चयन कर उन्हे अपने कार्यक्षेत्रो में समुदाय नेतृत्वकारी महिला के रूप में नियुक्त किया जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं का सशक्त बनाना था जिससे वह अपने क्षेत्र की समस्याओं को स्वंय चिन्हित कर समाधान करने में सक्षम बन सकें।
- सर्वप्रथम आली की कार्यकर्ता ने नेतृत्वकारी महिलाओं को नागरिक होने के नाते प्राप्त उनके अधिकारो के बारे में बताया साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली व सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की जानकारी दी जिसका प्रयोग करके वह गांव की महिलाओं को जागरूक कर सकें व नागरिक होने के नाते उनके अधिकारों की जानकारी दे सकें जिससे महिलायें अपने अधिकारों की मांग कर अपनी नागरिकता जता सकें।
- समुदाय नेतृत्वकारी महिलायें प्रत्येक 15 दिन के अन्तराल गांव की महिलाओं से उनके घर जाकर मिलती है व सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जानकारी देती है जिससे जो महिलायें बैठको में अपनी प्रतिभागिता नही निभा पाती हैं वह भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत अपने अधिकारों से अवगत हो सकें।
- आली की कार्यकर्ता द्वारा जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी व अन्य अधिकारियांे के साथ समय समय पर बैठक कर गांव वालांे की समस्या पर चर्चा करते हैं जिससे अधिकारी गांव में व्याप्त जमीनी स्तर की समस्याओं से अवगत हो तथा उचित कार्यवाही करें।
- आली की समुदाय नेत्रत्वकारी महिलायें अपने कार्यक्षेत्र में कार्यरत कोटेदारो पर स्वंय तथा गांव की महिलाओ को पी0डी0एस0 की जानकारी देकर उचित मात्रा व मूल्य पर राशन देने का दबाव बनाती है।
- प्रत्येक नेत्रत्वकारी महिला अपने कार्यक्षेत्र में मुस्लिम व दलित महिलाओं के साथ प्रत्येक महिने में दो बार बैठक करती हैं व महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में अवगत कराती है साथ ही उन्हे सरकार द्वारा चल रही अन्य योजनाओं की जानकारी भी देती है।
- आली के कार्यकर्ता अपने कार्यक्षेत्रों में जाकर समय समय पर राशन से सम्बंधित डाक्यूमेंटरी फिल्म भी दिखाते है तथा बाद में उस पर आधारित चर्चा करते है जिससे महिलाये व युवा बैठक में अपना अधिक योगदान व रूची दे व चर्चा के माध्यम से जागरूक हो सकें व अपने अधिकारो से अवगत हो सकें।
- आली के कार्यकर्ता व नेतृत्वकारी महिलायें सूचना का अधिकार, 2005 का प्रयोग करके विभागों से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्र्तगत आने वाली योजनाओं की जानकारी लेतीं है व गांव में महिलाओं को चल रही योजनाओं से अवगत कराती है।
- आली अपने संदर्भ केन्द्र की सहायता से सार्वजनिक वितरण प्रणाली से सम्बंधित संदर्भ सामग्री बनाता है जिसे कार्यकर्ता व नेत्रत्वकारी महिलायें अपने कार्यक्षेत्रों में वितरित करके लोगो को योजना के प्रति जागरूक करते है।
- आली की सभी नेतृत्वकारी महिलायें अपने अपने कार्यक्षेत्र में राशन वितरण के दिन राशन की गांव की महिलाओं के साथ जाकर उन्हे राशन दिलाती है व वितरण की निगरानी करती है जिससे महिलाओं को र्निधारित मात्रा व मूल्यों पर राशन मिल सके।
- आली के कार्यकर्ता ने खाद्य एंव रसद विभाग, उत्तर प्रदेश की वेबसाइट से सभी नेतृत्वकारी महिला के मोबाइल में एस0एम0एस0 सेवा पंजीकृत की है जिससे प्रत्येक माह जब कोटेदार को विभाग से राशन आवंटित होता है तो सभी नेतृत्वकारी महिलाओं को एस0एम0एस0 मिल जाता है व वह गांव में महिलाओं को इसकी सूचना देती है।
- आली की कार्यकर्ता ’जिला खाद्य आपूर्ति एंव रसद विभाग’ एवं ’राज्य खाद्य एंव रसद विभाग, उत्तर प्रदेश’ में संबन्धित अधिकारियों से मिलकर वर्तमान सरकारी आदेशो के बारे में जानकारी व प्रतिलिपी तथा अन्य दस्तावेजो को संग्रहित करते है जिसके आधार पर अपने कार्यक्षेत्रो में योजना के सुचारू क्रियान्वयन के लिये पैरोकारी करती है।
- आली द्वारा अपने कार्यक्षेत्र के प्रत्येक गंाव में ’शिकायत शिविर’ लगाये जाते है जिसमें गांव का कोई भी व्यक्ति उच्च अधिकारी को अपनी शिकायत करने के लिये अपने नाम का शिकायत पत्र बना सकता है (बाद में समुदाय नेतृत्वकारी महिलायें अन्य महिलाओं के साथ सभी शिकायत पत्रों को उच्च अधिकारी के दफ्तर में जमा करने जाती हैं)
- आली के कार्यकर्ता समय समय पर नेतृत्वकारी महिलाओं के क्षमतावर्धन के लिए कार्यशाला का आयोजन करते है जिससे वह नारीवादी समानता व अधिकार की सोच के साथ महिलाओं को उनके अधिकारो के बारे में बता सके।
आज़मगढ़ जिले में आली के कार्य के बाद सकारात्मक बदलाव
2010 से आज़मगढ़ जिले में आली के सामुदायिक पहल नामक कार्यक्रम के सक्रिय रूप से कार्य करने के बाद आज़मगढ़ के विभिन्न क्षेत्रो में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के वितरण व योजनाओं में कुछ सकारात्मक उपलब्धियां मिली जो इस प्रकार है:-
- आली के सरायमीर, बिलरियागंज व फरिहा नामक कार्यक्षेत्रों में राशन का वितरण सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत निर्धारित मूल्यो पर होने लगा।
- सभी कार्यक्षेत्रों में राशन कोटे की दुकान महिने में 1 से 3 दिन खुलती थी जिस पर नेतृत्वकारी महिलाओं व आली के कार्यकर्ता ने कोटेदार व सरकारी अधिकारियो के साथ कई बार बैठक की और सरकारी शासनादेश (संख्या 196/29-6-2002-रिट-78/2001 दिनांक 23.07.2002) का संदर्भ देते हुये पैरोकारी की जिसमें राशन की दुकानो के खुलने व बन्द होने के समय का उल्लेख है। इसके साथ नेतृत्वकारी महिलाओं व कार्यकर्ता ने गांव में महिलाओ को राशन कोटे की दुकान खुलने व बन्द होने के सम्बंध में जागरूक किया। वर्तमान में राशन कोटेदार महिने में राशन की दुकान 10 से 15 दिन खोलता है।
- महिलायें अपने अधिकारों से अवगत हुई व जानकारी लेने के लिये रूचि लेने लगी (जो महिलायें पहले अपने ही गांव में बैठको में नही आती थी अब वही आज़मगढ़ स्थित के आली आफिस में आयोजित कार्यशालाओं में आती है)।
- महिलायें ने अपने घरो से निकलकर अपने अधिकारों की मांग करना शुरू कर दिया व स्वंय संगठित होकर जिले में अधिकारियों से कोटेदार के विरूद्व शिकायत करने लगी।
- मुख्यधारा से वंचित परिवार, जो सरकारी योजनाओ का लाभ नही ले पा रहे थे, अपने अधिकारों को जानने के बाद योजना का लाभ लेने के लिये आवेदन करना आरम्भ करने लगे (कई परिवार जिनके राशन कार्ड पर राशन वितरित नही हो रहा था उनके राशन कार्ड की जानकारी लेकर उसे सक्रिय कराया तथा वर्तमान में वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ ले रहे है)
- सरकारी विभाग के लोग जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली योजना के प्रति उदासिन थे वह अब कार्य कर रहे कर रहे है।
- आली द्वारा चयनित नेतृत्वकारी महिलायें अपने अपने कार्यक्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्र्तगत वितरित हो रहे राशन की निगरानी करती है व अपने क्षेत्रों का नेत्रत्व करती है।
- कोटे की दुकानो में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्र्तगत राशन की मात्रा और मूल्य की जानकारी को सार्वजनिक करने के लिये बोर्ड लग गये है जो पहले किसी भी राशन की दुकान में बोर्ड नही लगा था।
हिंसा मुक्त समाज की ओर एक सशक्त कदम रू हिंसा की चक्र तोडकर ज़ोया फातिमा (परिर्वतित नाम) अब दूसरो के लिए बनी प्रेरणा
45 वर्षीय ज़ोया फातिमा (परिर्वतित नाम) एक निम्न मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार से है जिसका जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ जिले के मुबारकपुर गांव में हुआ था। पुरानी परम्पराओं का अनुसरण करने के कारण ज़ोया को बचपन से ही पर्दे में रहना पडा व 16 वर्ष की आयु ही उसका निकाह हो गया। निकाह में कुछ समय बाद ही ससुराल वालो द्वारा ज़ोया को बहुत मार पीट का सामना करना पडा जिसके कारण ज़ोया में डर और भय व्याप्त हो गया। इन सब परिस्थितियों में ही ज़ोया ने तीन बच्चो को जन्म दिया परन्तु उसके उपर हो रही हिंसा में किसी प्रकार की कोई कमी नही आई और इस हिंसा के चलते ज़ोया का उसके पति से अलगाव हो गया क्योकि ज़ोया ने कभी हिंसा के खिलाफ आवाज़ नही उठाई थी इसलिए असहाय होकर ज़ोया बच्चो को अपने साथ अपने मायके लाने के लिये भी आवाज़ नही उठा सकी और उसे अपने बच्चो से अलग होना पडा।
पित्रसत्तात्मक समाज की यह धारणा है कि महिलायें पुरूषों द्वारा प्राप्त सुरक्षा के दायरे में ही सुरक्षित हो सकती है अतः ज़ोया को आपने घर वालो के दबाव में पुनः विवाह करना पडा जिससे उन्होने दो सन्तानो को जन्म दिया परन्तु इस बार भी दुर्भाग्यवश ज़ोया को उसी प्रकार हिंसा का सामना करना पडा और उन्हे अपने पति का घर छोडना पडा और अपने मायके आ गई। मायके आने के 1 हफ्ते बाद ही ज़ोया पर ससुराल वापस जाने का दबाव बनाया जाने परन्तु इस बार ज़ोया ने अपने और अपनी संन्तानो के लिये आवाज़ उठाई और अपने दोनो बच्चो के साथ आज़मगढ़ के बिलेरियागंज नामक गांव में एक किराए के घर में रहने लगी।
इस दौरान ज़ोया आली की एक कार्यकर्ती अशुमाला के सम्पर्क में आई। आली एक विधिक पैरोकारी समूह है जिसकी मुख्य शाखा लखनऊ में है व सन् 1998 से आज़मगढ़ में सामुदायिक पहल कार्यक्रम के नाम से महिलाओं विशेषकर वंचित वर्ग की महिलाओं के साथ सक्रिय रूप से कार्य करती आ रही है।
आली के साथ सक्रिय रूप से कार्य करने के बाद ज़ोया अपने गांव में एक सशक्त नेत्रत्वकारी महिला के रूप में उभरी। आली के साथ इतने साल के कार्यानुभव के बाद ज़ोया में कई सकारात्मक बदलाव आए जैसे जो ज़ोया पहले किसी पुरूष से बात करने में संकोच करती थी अब वह अपने गांव में हो रही महिला हिंसा के विरूद्व आवाज़ उठाती है और जरूरत पडने पर पीडित महिला के साथ थाने में जाकर हिंसा के खिलाफ आवेदन देती है व एफ0आई0आर कराती है तथा निर्भय होकर सरकारी अधिकारीयों व पुलिस से बात करती है।
ज़ोया न सिर्फ महिला हिंसा के मुद्दो पर आवाज़ उठाती है बल्कि समुदाय की महिलाओं के जागरूक करने के लिये अलग अलग स्थानो पर जाकर बैठको का आयोजन करती है और सूचना का अधिकार, घरेलू हिंसा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, समेंकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम (आई.सी.डी.एस) आदी विषयों पर चर्चा के माध्यम से महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करती है।
ज़ोया आली के साथ जुडकर अपने जिले में सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी कार्य करती है तथा गांव के विभिन्न मोहल्लो के राशन कोटेदारों की कोटे की दुकान पर राशन वितरण के दिन निगरानी करती है यदि राशन कोटेदार सरकार द्वारा निश्चित मूल्य व मात्रा पर राशन न देने पर अन्य महिलाओं को एकत्रित कर उसकी विभाग में शिकायत करती है।
आपने कार्य के दौरान ज़ोया ने शिक्षा के अभाव का अनुभव किया तथा वर्ष 2013 में शिक्षा के 19 वर्ष के अन्तराल के बाद ज़ोया ने फिर से 10 कक्षा में प्रवेश लिया। ज़ोया आली के सम्पर्क में आने से पहले अपने जिले (आज़मगढ़) से बाहर भी नही गई थी परन्तु वर्तमान समय में उन्होने दिल्ली में जागोरी संस्था के द्वारा आयोजित किये गए 4 दिवसीय प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया तथा जरूरत पडने पर लखनऊ स्थित आली के दफ्तर में भी आने लगी।
ज़ोया में आए यह सकारात्मक बदलाव समुदाय की प्रत्येक महिला के लिए एक उदाहरण है। ज़ोया अब ना सिर्फ खुद हिंसा के चक्र से बाहर निकल एक आत्मनिर्भर और सशक्त जीवन जी रही है बल्कि अपने समुदाय की अन्य महिलाओं को भी अपने हक और अधिकारो के प्रति जागरूक कर हिंसा मुक्त समात बनाने में अपना सक्रिय योगदान निभा रही है।
प्रगति रिर्पोट रू समुदायिक पहल कार्यक्रम, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आज़मगढ रू जनवरी 2010 – मई 2014 तक आज़मगढ जिले में अपने कार्य के दौरान आली के समक्ष पुलिस द्वारा गैर कानूनी हिरासत के अलावा भी अन्य कई मुद्दे व समस्यायें चिन्हित होकर सामने आयी जिसमें से मुख्य समस्या वंचित वर्ग व गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगो को सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलना था। जिसमें से एक प्रमुख समस्या सार्वजनिक वितरण प्रणाली से सम्बंधित थी। आज़मगढ में ज्यादातर परिवारो का जीवनयापन सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी0डी0एस0) के द्वारा ही होता था परन्तु जिले में राशन का वितरण असामान्य व निरन्तर न होने के साथ साथ निर्धारित मूल्यो व मात्रा के अनुसार भी नही होता था जो आज़मगढ़ में महिलाओं की एक मुख्य समस्या थी अतः आली ने आज़मगढ़ में अपने सामुदायिक पहल कार्यक्रम के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली को एक मुद्दे व समस्या के रूप में चिन्हित कर कार्य करने का निर्णय किया।